कुतुबमीनार दक्षिण दिल्ली के महरौली में है, ईट से बनी सबसे ऊँची मीनार है। इसकी इसकी ऊँचाई 72.5 मीटर आैर व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर जा कर 2.7 मीटर हो जाता है। इसमें 379 सीढिया है।
कुतुबुदीन मोहम्मद गौरी का सेनापित था 1206 में गौरी ने कुतुबुदीन को अपना नायब नियुक्त किया आैर जब 1206 में गौरी की मृत्यु हुई तब वह गद्दी पर बैठा। अनेक विरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौर में ही दो वर्ष लगे थे। 1210 में लाहौर में पोलो खेलते हुए घोडे से गिरकर उसकी मौत हो गई।
परन्तु इतिहास मे लिख दिया गया कि कुतुबुदीन ने -
कुतुबमीनार , कुवैतुल इस्लाम मस्जिद आैर अजमेर में अढाई दिन का झोपडा बनवाया।
प्रश्न उठता है कि ........ क्या कुतुबुदीन ने अपने राज्य काल 1206 से 1210 तक 4वर्षो में कुतबमीनार, कुवैतुल इस्लाम मस्जिद , अजमेर में अढाई दिन का झोपडा जैसी इमारते बनवा सकता था।
कुछ इतिहास कारो ने इसे 1193 में बनना बतलाया है। यदि 1193 में कुतुबुदीन ने मीनार बनवाना चालु किया तो उस समय बादशाह मोहम्मद गौरी था। तो सेनापति के नाम से मीनार कैसे बनी ?
उसने लिखवाया कि उस परिसर में बने 27 मंदिरों को गिरा कर उसके मलबे से मीनार बनवाई।
सोचने का विषय है कि क्या मलबे से कोई कुतुबमीनार जेसा उत्कृष्ट कलापुर्ण भवन बनाया जा सकता है ?
जिसका हर पत्थर स्थानानुसार अलग-अलग नाप का पूर्व निधारित हो ।
कुछ ने लिखा है कि नमाज के समय अजांन देने के लिए यह मीनार बनाई गई थी पर क्या इतनी ऊंचाई से
किसी कि आवाज़ नीचे आ सकती है ?
यह सब तर्क की कसौटी पर सच नहीं है।
महरौली जहा पर कुतुब-मीनार परिसर है महरौली वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था जो सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक थे जो खगोलशास्त्री थे उन्होन इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के चारों आैर नक्षत्रों के अध्ययन के लिए 27 कलापुर्ण परिपथो का निर्माण करवाया था।
आज भी इन पिरपथो के स्तंभों पर सूक्ष्म कारीगरी के साथ देवी देवताआें की प्रतिमाए भी उकेरी गई थी जो नष्ट होने के बाद भी कही दिख जाती है एंव संस्कृत भाषा के अंश दीवारो आैर बीथकिाआें के स्तंभों पर उकेरे हुए मिल जायेगे जो मिटाए गए होने के बावजूद पढे जा सकते है। मीनार ए चारों ओर के निर्माण का ही भाग लगता है अलग से बनवाया हुआ नहीं लगता इसमे मूल रूप में सात मंजिलें थीं सातवीं मंजिल पर ब्रम्हा जी की हाथ में वेद लिए हुए मूर्ति थी जो तोड़ डाली गयीं थी छठी मंजिल पर विष्णु जी की मूर्ति के साथ कुछ निर्माण थे वह भी हटा दिए गए अब केवल पाँच मंजिलें ही शेष है।
इसका नाम विष्णु ध्वज स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ प्रचलन में था, इन सब का सबसे बड़ा प्रमाण उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है जिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वज कहा गया है सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के राज्य काल में स्थापित किया गया था और यह लौह स्तम्भ आज भी विज्ञानं के लिए आश्चर्य की बात है कि आज तक इसमें जंग नहीं लगा उसी महान सम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ आर्य भट्ट - खगोल शास्त्री एवं भवन निर्माण विशेषज्ञ वराह मिहिर वैद्य राज ब्रम्हगुप्त आदि हुए। ऐसे राजा के राज्य काल को जिसमे लौह स्तम्भ स्थापित हुआ तो क्या जंगल में अकेला स्तम्भ बना होगा निश्चय ही आसपास अन्य निर्माण हुए होंगे जिसमे एक भगवन विष्णु का मंदिर था उसी मंदिर के पार्श्व में विशालस्तम्भ वि ष्णुध्वज जिसमे सत्ताईस झरोखे जो सत्ताईस नक्षत्रो व खगोलीय अध्ययन के लिए बनाए गए निश्चय ही वराह मिहिर के निर्देशन में बनाये गए इस प्रकार कुतब मीनार के निर्माण का श्रेय सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के राज्य कल में खगोल शास्त्री वराहमिहिर को जाता है।
कुतुबुद्दीन ने सिर्फ इतना किया कि भगवान विष्णु के मंदिर को विध्वंस किया उसे कुवातुल इस्लाम मस्जिद कह दिया। विष्णु ध्वज के स्तम्भ के हिन्दू संकेतों को छुपाकर उन पर अरबी के शब्द लिखा दिए और क़ुतुब मीनार बन गया।
अब आप खुद ही सोचे ..........................
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