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03 March 2015

रविन्द्र नाथ टैगोर

रविन्द्र नाथ का जन्म 7मई1861 में कलकत्ता भारत में हुआ एंव मृत्यु 7अगस्त1941 में कलकत्ता भारत में हुई। रविन्द्र नाथ टैगोर को रविन्द्र नाथ ठाकुर एंव गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है।
रविन्द्र नाथ के पिता का नाम देवेन्द्र नाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था। इनका जन्म कलकत्ता के जोडो साको ठाकुर बाडी में हुआ। स्कुल की पढाई सेंट जवियर स्कुल से हुई। पिता के ब्रहासमाजी होने के कारण वे भी ब्राहसमाजी थे। अपनी रचानाओ के कारण व कर्म से उन्होने सनातन धर्म को आगे बढाया। आपने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद किया, जिससे उनकी प्रतिभा पूरी दुन में फेली।

आप ने बेरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इग्लैण्ड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कुल में नाम दर्ज करवाया। लन्दन के विशवविधालय में कानून का अध्ययन किया, लेकिन सन् 1880 में बिना डिग्री हासिल किये ही स्वदेष लौट आये, सन्1883 में मृणलिनि देवी के साथ उनका विवाह हुआ।

आपकी सन् 1877 में 16 साल की आयु में लधुकथा प्रकाषित हुई। भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फुकने वाल रविन्द्र नाथ के सृंजन संसार में गीतांजली , पूरबी प्रवाहिनी , षिषु भोलेनाथ , महुआ, वनवाणी , परिषेष , पुनष्च , वाथिक शेषलेखा , चोखेर बाली , कणिका , नैवेध मायरे खेला , क्षणिक आदि शामिल है। काव्य रचना गीताजंली के लिए सन् 1913 में साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला था।

साहित्य की शायद ही ऐसी कोई शाखा हो जिनमें उनकी रचना न हों - कविता , गान , कथा , उपन्यास , नाटक , प्रबन्ध , शिल्पकला सभी विधाओं में उन्होने रचना की।
रविन्द्र नाथ एक मात्र ऐसे कवि थे जिनकी दो रचनाए दो देषों का राष्ट्रगान बनी भारत का राष्ट्रगान ’’ जन-गण-मन ’’ एंव बग्लादेश का राष्ट्रगान ’’ आमार सोनार बांग्ला ’’ बनी।

जन-गण-मन जार्ज पंचम के हिन्दुस्तान आने पर उनकी स्तुति के लिए लिखी गई थी। इस कविता से खुश हो ब्रिटिश सरकार ने रविन्द्र नाथ को सर की उपाधि दी थी। सन् 1919 में जलिया वाला बाग काण्ड से दुखी हो कर उन्होने उपाधि वापस ब्रिटिश सरकार को लौटा दी।

शन्ति निकेतन :
रविन्द्र नाथ को बचपन से ही प्रकृति से बहुत प्यार था। वह हमेशा सोचा करते थे की प्रकृति के सानिध्य में ही विधार्थियों को अघ्ययन करना चाहिए, इसी सोच को मूर्तरुप देने के लिए सन् 1901 में सिहालदह छोड कर आश्रम की स्थापना की प्रकृति के सान्निध्य में पेडों , बगीचों और एक लाइब्रेरी के साथ रविन्द्र नाथ ने शन्तिनिकेतन आश्रम की स्थापना की।

रविन्द्र नाथ और गांधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहे, जहा गांधी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को अधिक महत्व देते थे वही रविन्द्र नाथ मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे, लेकिन वैचारिक मतभेद के बाद भी दोनो एक दूसरे का सम्मान बहुत करते थे। आप ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। उनकी अधिकतर रचनाए तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी है हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगी की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के अलग-अलग रंग प्रस्तुत करते है।

एक समय था जब शन्ति निकेतन आर्थिक कमी से जूझ रहा था, और गुरुदेव देश भर में नाटको का मंचन कर के धन संग्रह कर रहे थे,
 उस वक्त गांधी ने टैगोर को 60 हजार रुपये का चैक अनुदान में दिया था
उसके बाद रविन्द्र नाथ ने गांधी को महात्मा का विषेषण दिया


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