मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफ़ाओं की दीवारों में अपने २६९ ईसापूर्व से २३१ ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।
अशोक के शिलालेख
अशोक के १४ शिलालेख विभिन्न लेखों का समूह है जो आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गये हैं-
- धौली- यह उड़ीसा के पुरी जिला में है।
- शाहबाज गढ़ी- यह पाकिस्तान (पेशावर) में है।
- मान सेहरा- यह पाकिस्तन के हजारा जिले में स्थित है।
- कालसी- यह वर्तमान Uttrakhand (देहरादून) में है।
- जौगढ़- यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है।
- सोपरा- यह महराष्ट्र के थाणे जिले में है।
- एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित है।
- गिरनार- यह काठियाबाड़ में जूनागढ़ के पास है।
अशोक के लघु शिलालेख
अशोक के लघु शिलालेख चौदह शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मिलित नहीं है जिसे लघु शिलालेख कहा जाता है। ये निम्नांकित स्थानों से प्राप्त हुए हैं-
- रूपनाथ - ईसा पूर्व २३२ का यह मध्य प्रदेश के कटनी जिले में है।
- गुजरी- यह मध्य प्रदेश के दतिया जिले में है।
- भबू- यह राजस्थान के जयपुर जिले में है।
- मास्की- यह रायचूर जिले में स्थित है।
- सहसराम- यह बिहार के शाहाबाद जिले में है।
धम्म को लोकप्रिय बनाने के लिए अशोक ने मानव व पशु जाति के कल्याण हेतु पशु-पक्षियों की हत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। राज्य तथा विदेशी राज्यों में भी मानव तथा पशु के लिए अलग चिकित्सा की व्य्वस्था की। अशोक के महान पुण्य का कार्य एवं स्वर्ग प्राप्ति का उपदेश बौद्ध ग्रन्थ संयुक्त निकाय में दिया गया है।
अशोक ने दूर-दूर तक बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु दूतों, प्रचारकों को विदेशों में भेजा अपने दूसरे तथा १३वें शिलालेख में उसने उन देशों का नाम लिखवाया जहाँ दूत भेजे गये थे।
दक्षिण सीमा पर स्थित राज्य चोल, पाण्ड्य, सतिययुक्त केरल पुत्र एवं ताम्रपार्णि बताये गये हैं।
अशोक के अभिलेख
अशोक के अभिलेखों में शाहनाज गढ़ी एवं मान सेहरा (पाकिस्तान) के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण हैं। तक्षशिला एवं लघमान (काबुल) के समीप अफगानिस्तान अभिलेख आरमाइक एवं ग्रीक में उत्कीर्ण हैं। इसके अतिरिक्त अशोक के समस्त शिलालेख लघुशिला स्तम्भ लेख एवं लघु लेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं। अशोक का इतिहास भी हमें इन अभिलेखों से प्राप्त होता है।
अभी तक अशोक के ४० अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं। सर्वप्रथम १८३७ ई. पू. में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान ने अशोक के अभिलेख को पढ़ने में सफलता हासिल की थी।
रायपुरवा- यह भी बिहार राज्य के चम्पारण जिले में स्थित है।
प्रयाग'- यह पहले कौशाम्बी में स्थित था जो बाद में मुगल सम्राट अकबर द्वारा इलाहाबाद के किले में रखवाया गया था।
अशोक के स्तम्भ-लेख
अशोक के स्तम्भ लेखों की संख्या सात है जो छः भिन्न स्थानों में पाषाण स्तम्भों पर उत्कीर्ण पाये गये हैं। इन स्थानों के नाम हैं-
- दिल्ली तोपरा- यह स्तम्भ लेख प्रारंभ में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में पाया गया था। यह मध्य युगीन सुल्तान फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया। इस पर अशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण हैं।
- दिल्ली मेरठ- यह स्तम्भ लेख भी पहले मेरठ में था जो बाद में फिरोजशाह द्वारा दिल्ली लाया गया।
- लौरिया अरराज तथा लौरिया नन्दगढ़- यह स्तम्भ लेख बिहार राज्य के चम्पारण जिले में है।
अशोक के लघु स्तम्भ-लेख
सम्राट अशोक की राजकीय घोषणाएँ जिन स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें लघु स्तम्भ लेख कहा जाता है, जो निम्न स्थानों पर स्थित हैं-
- सांची- मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में है।
- सारनाथ- उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में है।
- रूभ्मिनदेई- नेपाल के तराई में है।
- कौशाम्बी- इलाहाबाद के निकट है।
- निग्लीवा- नेपाल के तराई में है।
- ब्रह्मगिरि- यह मैसूर के चिबल दुर्ग में स्थित है।
- सिद्धपुर- यह ब्रह्मगिरि से एक मील उ. पू. में स्थित है।
- जतिंग रामेश्वर- जो ब्रह्मगिरि से तीन मील उ. पू. में स्थित है।
- एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है।
- गोविमठ- यह मैसूर के कोपवाय नामक स्थान के निकट है।
- पालकिगुण्क- यह गोविमठ की चार मील की दूरी पर है।
- राजूल मंडागिरि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है।
- अहरौरा- यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है।
- सारो-मारो- यह मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित है।
- नेतुर- यह मैसूर जिले में स्थित है।
प्रमुख अभिलेखों का परिचय
अशोक के शिलालेख १४ विभिन्न लेखों का समूह हैं जो आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गये हैं। मगध साम्राज्य के प्रतापी मौर्यवंशी शासक अशोक ने अपनी लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा को प्रजा में प्रसारित करने के लिए 14 स्थलों पर शिलालेख, लघु शिलालेख एवं अन्य अभिलेख उत्कीर्ण करवाया था।
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