जन गण मन कविता की रचना रविन्द्र नाथ
टैगोर ने सन् 1911 में की थी, उस समय हिन्दुस्तान में अग्रेंजो का राज था। यह कविता जार्ज पंचम जो की हिन्दुस्तान का अधिनायक था, के हिन्दुस्तान आने पर उनकी स्तुति में लिखी गई थी। यह भाक्तिभाव की रचना लिखकर राजभक्ति प्रदर्षित की थी।
टैगोर ने सन् 1911 में की थी, उस समय हिन्दुस्तान में अग्रेंजो का राज था। यह कविता जार्ज पंचम जो की हिन्दुस्तान का अधिनायक था, के हिन्दुस्तान आने पर उनकी स्तुति में लिखी गई थी। यह भाक्तिभाव की रचना लिखकर राजभक्ति प्रदर्षित की थी।
इस से खुश हो कर ब्रिटिश सरकार ने रविन्द्र नाथ टैगोर को सर की उपाधि दी थी। यह अलग बात है कि सन्1919 में जलियॉवाला बाग काण्ड से दुःखी होकर उन्होने वह उपाधि वापिस ब्रिटिश सरकार को लौटा दी।
रविन्द्र नाथ की लिखी कविता जन गण मन को संविधान सभा में दिनांक 24जनवरी1950 में भारत के राष्ट्रीय-गान के रुप में अपनाया गया था।
पूरे गान में 5 पद है, इस गान की गायन अवधि लगभग 52 सेकण्ड है। कुछ अवसरो पर सक्षिप्त रुप से भी गाया जाता है इसमें प्रथम व अन्तिम पक्तियां ही बोली जाती है जिसमे लगभग 20 सेकण्ड का समय लगता है।
इसे सर्वप्रथम 27दिसम्बर1911 को कांग्रेस के कलकता अधिवेशन में गाया गया था।
मदन लाल वर्मा ’क्रान्त ’ की पुस्तक स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास (भाग 1) प्ैठछ 81.7783.122.4 ;ैमजद्ध की पृष्ठ संख्या 150 पर भारत भाग्य विधाता शीर्ष से रवीन्द्र नाथ का पूरा गीत इस तथ्यात्मक टिप्पणी के साथ दिया गया है-
भारत के मुक्ति संग्राम में सन्1911 राजनीतिक दृष्टि से सभी के लिये हर्ष का विषय था क्योंकि इंग्लैण्ड से जार्ज पंचम हिन्दुस्तान आये थे। बंग-भंग का निर्णय रद्द हुआ था। साहित्यकार भी इससे अछूते नहीं रहे, बद्रीनारायण चौधरी ’ प्रेमधन ’ ने जार्ज पंचम की स्तुति में सौभाग्य समागम, अयोध्यासिंह उपाध्याय ’ हरिओध ’ ने शुभ स्वागत, श्रीधर पाठक ने श्री जार्ज वन्दना तथा नाथूराम शर्मा ’शंकर’ ने महेन्द्र मंगलाष्टक जैसी हिन्दी में उत्कृष्ट भाक्तिभाव की रचनायें लिखकर राजभक्ति दिखाई थी।
राष्ट्रगान हिन्दी में:
जन-गण-मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता।
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा, द्राविड उत्कल बंग।
विध्य हिमाचल यमुना गंगा, उच्छल जलधि तरंग।
तब शुभ नामे जागे, तब शुभ आिशश मांगे, गाये तब जय गाथा।
जन गण मंगल दायक जय हे, भारत भाग्य विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।
राष्ट्रगान के बाद के पद -
अहरह तव आह्नान प्रचारित, शुनि तव उदार बाणी।
हिन्दू बौद्ध सिख जैन पारसिक, मुसलमान ख्रिस्तानी।
पुरब पशिचम आसे, तव सिंहासन-पाषे, प्रेमहार हय गॉथा।
जन-गण-ऐक्य-विधायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
पतन-अभ्युदय-वन्धुर-पन्था, युग-युग-धावित यात्रि।
हे चिर सारथि, तव रथचक्रे, मुखरित पथ दिन रात्रि।
दारुण विप्लव-माझे, तव शंखध्वनि बाजे, संकट दुःख त्राता।
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
घोर तिमिरघन निविड निषीथे, पीडित मूचर््िछत देषे।
जागृत छिल तव अविचल मंगल, नत नयने अनिमेषे।
दुःस्पप्ने आतंके, रक्षा करिले अंके, स्नेहमयी तुमि माता।
जन-गण-दुःखत्रायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्दवि, पूर्ब-उदयगिरिभाले।
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण, नवजीवनरस ढाले।
तब करुणारुणरागे, निद्रित भात जागे, तव चरण नत माथा।
जय जय जय हे, जय राजेवर !! भारत-भाग्य-विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
रविन्द्र नाथ टैगोर के इस 5 पदो के गीत (जार्ज पंचम के लिए गाये स्तुती गान) में से प्रथम पद को दो महत्वपूर्ण दिवस 15अगस्त व 26जनवरी को भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद सावधान मुद्रा में खडे हो कर सामूहिक रुप से गाया जाता है।
आज हमारे राष्ट्रीय-गान में सिंध-प्रांत नहीं है पंजाब का आधा हिस्सा पाकिस्तान में है फिर यह राष्ट्रीय-गान कैसे हुआ ।....................................
आप खुद ही सोचे क्या यह हिन्दुस्तान का राष्ट्रीय-गान सही है ?
वन्दे मातरम्
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