Translate

आप के लिए

हिन्दुस्तान का इतिहास-.धर्म, आध्यात्म, संस्कृति - व अन्य हमारे विचार जो आप के लिए है !

यह सभी को ज्ञान प्रसार का अधिकार देता है। यह एेसा माध्यम है जो आप के विचारों को समाज तक पहुचाना चाहाता है । आप के पास यदि कोई विचार हो तो हमे भेजे आप के विचार का सम्मान किया जायेगा।
भेजने के लिए E-mail - ravikumarmahajan@gmail.com

11 April 2015

इस्लाम

इस्लाम एक एकेशरवादी धर्म है। 
 ईश्वर,  अल्लाह (अरबी भाषा में ),   खुदा (फारसी पशतु भाषा शब्द) को मानना इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धान्त है।
एक  ईश्वर को मानना इस्लाम का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है इसी का नाम तौहीद है।  अंतिम रसूल और बी, मुहम्मद द्वारा इंसानों तक पहुंचाई गई अंतिम ईशवरीय किताब कुरआन मजीद की शिक्षा पर स्थापित है।
 (एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं।) 

इस्लाम में ईश्वर को मानव की समझ से परे माना जाता है।  ईश्वर अद्वितीय है - उसके जैसा और कोई नहीं। इस्लाम में ईश्वर की एक विलक्षण अवधारणा पर बल दिया गया है और यह भी माना जाता कि उसका सम्पूर्ण विवरण करना मनुष्य से परे है। ईश्वर सनातन, सदा से सदा तक जीने वाला है। न उसे किसी ने जना और न ही वो किसी का जनक है।

इस्लाम का उदय  
इस्लाम का उदय सातवी सदी में अरब  में हुआ। इसके अन्तिम नबी   मुहम्मद   का जन्म 570 इस्वी में मक्का में हुआ था।
लगभग 613 इस्वी   के आसपास मुहम्मद  ने लोगों को अपने ज्ञान का उपदेश देना आरम्भ किया था। इसी से इस्लाम का आरम्भ माना जाता है।  ( ईस्वी का मतलब ईसा यानी ईसाई धर्म के बाद  ) 

मुहम्मद के परिवार का मक्का के एक बडे धार्मिक स्थल पर प्रभुत्व था। उस समय अरबी लोग मूर्तिपूजक थे तथा हर कबीले का अपन देवता होता था। मक्का में काबे में इस समय लोग साल के एक दिन जमा होते थे और सामूहिक पूजन होता था।

सन् 613 में आपने लोगों को ये बताना आरम्भ किया कि उन्हे  ईश्वर  से यह संदेश आया है कि  ईश्वर  एक है और वो इन्सानों को सच्चाई तथा ईमानदारी की राह पर चलने को कहते है।

उन्होने मूर्तिपूजा का विरोध किया। यह बात मक्का के लोगो को पसन्द नहीं आई वहा के लोगो के जोरदार विरोध करने पर सन् 622 में मक्का छोडकर मदीना जाना पडा। इसे हिजरा कहते है और यहा से इस्लामी कैलेंडर हिजरी आरंभ होता है।
वही उन्होन खादीजा नाम की एक विधवा के धर काम करना आरम्भ किया बाद में उन्होन उसी से शादी भी कर ली।
अगले कुछ वर्षो में कई लोग मुहम्मद  के अनुयायी बने। उनके अनुयायियों के प्रभाव में आकर भी कई लोगो ने इस्लाम को कबुल किया।  इसके बाद मुहम्मद  ने मक्का वापसी की और उसे युद्ध में जीत लिया। इस धटना के बाद कई और लोग इस्लाम में परिवर्तित हुए पर मुहम्मद साहब को कई विरोधों का सामना करना पडा जिसका दमन उन्होने युद्ध जीत कर हासिल किया।

खिलाफत:
सन् 632 में जब मुहम्मद साहब की मृत्यु हुई तब कोई भी व्यक्ति  उनका वैध उत्तराधिकारी नहीं था। इसी समय खिलाफत की संस्था का गठन हुआ जो इस बात का निर्णय करता कि इस्लाम का उत्तराधिकारी धोषित किया गया। पहले चार खलीफाओं ने अपने रिशतो के कारण खिलाफत हासिल की थी।
सुन्नी मुसलमानों के लिए पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के बाद सन् 632 से लेकर सन् 661 के मध्य के खलीफा (प्रधानों)को राशिदुन या अल खलीफ उर्र-राशिदून (सही दिशा में चलते हुए) कहते है। कार्यकाल के अनुसार ये चार खलीफा है-
प्रथम चार खलीफा:
(1) अबु बकर (632-634)  ...............................
(2) उमर बिन अल खतब (634-644)
(3) उस्मान बिन अफन (644-656)
(4) अली बन अबि तालिब (656-661)

2-   उमर बिन अल खताब:   (634-644)  ये कुरेैशी खनदान से थे अज्ञानता के दिनों में ही लिखना पढना सीख लिया था जो कि उस जमाने में बेकार का काम समझते थे। इनका कद बहुत उचा रोबदार चेहरा और गठला बदन था। उमर मक्का के मशहूर पहलवानों में से एक थे, जिनका पूरे मक्का में बडा दबदबा था। 8 जून सन् 632 को मुहम्मद साहब दुनिया को अलविदा कह गये। उमर तथा कुछ लोग ये विशवास ही ना रखते थे कि मुहम्मद साहब की मृत्यु भी हो सकती है। ये खबर सुनकर उमर अपने होश खो बैठे अपनी तलवार निकाल ली तथा जोर जोर से कहने लगे कि जिसने कहा कि नबी की मौत हो गई है मै उसका सर तन से जुदा कर दूगा इस नाजुक मौके पर हजरत अबु बक्र ने एक खुतबा अर्थात भाषण दिया जो बहुत मशहूर है  ’’ जो भी कोई मुहम्मद की इबादत करता था वो जान ले  कि वह हमारे बीच नहीं रहे तथा जो अल्लाह की इबादत करता है ये जान ले कि अल्ला जिन्दा है कभी मरने वाला नहीं  ’’ फिर कुरान की आयत पढ कर सुनाई ’’  मुहम्मद नहीं है सिवाय एक रसूल के उनसे पहले भी कई रसूल आय। अगर उनकी मृत्यु हो जाये या शहीद हो जाए तो तुम एडियों बल पलट जाओगे ? सुन कर बहुत बडे दुख को स्वीकार कर लिया। हजरत अबु ब्रक ने अपनी मृत्यु से पहले ही हजरत उस्मान को अपनी वसीयत लिखवाई कि उमर उनके उत्राधिकारी होगे। अगस्त सन् 634 में हजरत अबु बक्र की मृत्यु हो गई।

3-  उस्मान बिन अफन: (644-656)    मुहम्मद साहिब के दामाद और उनके प्रमुख साथियों में से थे।

4-  अली बन अबि तालिब (656-661)  शियाओं के पहले इमाम व सुन्नी समुदाय के चौथे खलीफा थे। इनका जन्म मक्का में हुआ था, पिता का नाम इमरान अबुतालिब तथा माता का नाम जनाबे फातिमा (पिता असद) था। वे मुहम्मद साहब के दामाद तथा चाचा-जात भाई भी थे। पत्नी का नाम जनाबे फातिमा (पिता मुहम्मद) था।
उनके दो बेटे हसन और हुसैन थे। आप के खलीफा बनने के बाद बहुत सी लडाइयां हुई जिनमें जंगे जमल , जंगे सिफ्फीन , जंगे नहरवान प्रमुख है।
सिर्फ अहमदिया समुदाय मुहम्मद को अन्तिम नबी नहीं मानता तथापि स्वयं को इस्लाम का अनुयायी कहता है और संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकारा भी जाता है हालांकि कई इस्लामी राष्ट्रों में उसे मुस्लिम मानना प्रतिबंधित है।
शिया और सुन्नी वर्गों की नींव
शिया -  अली के बाद  मुआविया खलीफा बन गये लेकिन मुसलमानों का एक वर्ग  जिसका मानना था कि मुसलमानों का खलीफा  मुहम्मद के परिवार का ही हो सकता है। उनका मानना था कि यह खलीफा  स्वयँ भगवान के द्वारा आध्यात्मिक मार्गदर्शन पाता है। इनके अनुसार अली पहले ईमाम थे। यह वर्ग शिया वर्ग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 
मुआविया के खलीफा बनने के बाद खिलाफत वंशानुगत हो गयी। इससे उम्मयद वंश का आरंभ हुआ। माविया क बेटे यज़ीद ने खिलाफत प्राप्त करते ही इस्लाम की नीतिओ के विरुद्ध कार्य करना शुरू कर दिया, उसके कृत्य से धार्मिक मुसलमान असहज स्थिति में आ गए, अब यज़ीद को आयश्यकता थी की अपनी गलत नीतिओ को ऐसे व्यक्ति से मान्यता दिला दे जिस पर सभी मुस्लमान भरोसा करते हो, इस काम के लिए यज़ीद ने हज़रत मुहम्मद के नवासे, हज़रत अली अलैहिस सलाम और  मुहम्मद की इकलौती पुत्री फातिमा के पुत्र हज़रत हुसैन से अपनी खिलाफत पर मंजूरी करनी चाही परन्तु  हुसैन ने उसके इस्लाम की नीतिओ के विरुद्ध कार्य करने के कारण अपनी मंजूरी देने से मना कर दिया,  हुसैन के मना करने पर यज़ीद की फौजों ने हुसैन और उनके ७२ साथियो पर पानी बंद कर दिया और बड़ी ही बेदर्दी के साथ उनका क़त्ल करके उनके घर वालो को बंधक बना लिया, यह युद्ध  हुसैन ने अपनी जान देकर भी जीत लिया " क़त्ले हुसैन असल में मर्गे यज़ीद है, इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद  "इस जंग में हुसैन को शहादत प्राप्ति हो गयी। शिया लोग १० मुहर्रम के दिन इसी का शोक मनाते हैं।
सुन्नी -   इस्लाम के सबसे बड़े सम्प्रदाय सुन्नी इस्लाम को मानने वाले मुस्लिम हैं।  संक्षिप्त में अहल अस- सुन्नाह  भी कहते हैं। सुन्नी शब्द अरबी के सुन्नाह  से आया है, जिसका अर्थ (पैगम्बर मोहम्मद) की बातें और कर्म या उनके आदर्श है। सामान्य अर्थों मे सुन्नी -पवित्र ईशसन्देश्टा मुहम्म्द स० के निधन के पश्चात जिन लोगो ने मुहम्मद स० द्वारा बताये गये नियमो का पालन किया सुन्नी कहलाऐ।
जो यह नहीं मानते कि मुहम्मद का परिवारजन ही खलीफा हो सकता है, सुन्नी कहलाये। सुन्नी पहले चारों खलीफाओं को राशिदून खलीफा कहते हैं जिसका अर्थ है सही मार्ग पे चलने वाले खलीफा।
धार्मिक पुस्तके -     मुसलमनों के अनुसार कुरान ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान की गयी अन्तिम धार्मिक पुस्तक है।  कुरान में चार और पुस्तकों की चर्चा है :
  1. सहूफ़ ए इब्राहीमी जो कि  अब्राहम (इब्राहीम) को प्रदान की गयीं। यह अब लुप्त हो चुकी है।
  2. तौरात (तोराह) जो कि मूसा को प्रदान की गयी।
  3. ज़बूर जो कि दाउद को प्रदान की गयी।
  4. इंजील (बाइबल) जो कि ईसा को प्रदान की गयी।
  1. अब्राहम : लगभग 1800 ई.पू. इब्रानी अर्थात्‌ यहूदी जाती के पितामह। बाइबिल में अब्राहम का जो वृत्तांत मिलता है (उत्पत्ति ग्रंथ, अध्याय 11-25), उसकी रचना लगभग 900 ई.पू. में अनेक परंपराओं के आधार पर हुई थी। सारी बाइबिल में अब्राहम का महत्व स्वीकृत है। इस्लाम धर्म क ग्रन्थ कुरान के अनुसार, इब्राहीम एक बहुत बडे पैगमबर हैं। कुरआन में इब्राहीम के नाम से एक अध्याय (सूरा) भी है जिसे "सूरये-इब्राहीम" कह्ते हैं।
  2. मूसा :  सभी इब्राहिमी धर्मों में एक प्रमुख नबी (ईश्वरीय सन्देशवाहक) माने जाते हैं। ख़ास तौर पर वो यहूदी धर्म के संस्थापक माने जाते हैं।  मूसा का एक पहाड़ पर परमेश्वर से साक्षात्कार हुआ और परमेश्वर की मदद से उन्होंने फ़राओ को हराकर यहूदियों को आज़ाद कराया और मिस्र से एक नयी भूमि इस्राइल पहुँचाया। इसके बाद मूसा ने इस्राइल को ईश्वर द्वारा मिले "दस आदेश" दिये जो आज भी यहूदी धर्म का प्रमुख स्तम्भ है।
  3. दाउद ईब्रानी पवित्र ग्रन्थों के अनुसार, इज़राइल का राजा था। वह ईश्वर के सच्चे भक्त थे और उन्होंने दीनतापूर्वक अपने पापों को स्वीकार कर लिया, उनके लिखे भजन आज भी ईसाई पूजा में प्रयुक्त हैं। ईसा मसीह 'दाऊद का पुत्र' कहलाते हैं क्योंकि वह दाऊद के राजवंश में उत्पन्न हुए थे। यहूदियों के लिए, दाउद की ज़िन्दगी बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन ईसाई धर्म के ख़याल से और मुसलमान धर्म के ख़याल से भी दाउद बड़ा राजा था और उसकी कहानी ईसाइयों के पास और मुसलमानों के पास एक प्रतीक होती है।
  4. ईसा :  ईसा या यीशु मसीह या जीज़स क्राइस्ट , इस्लाम के अज़ीम तरीन पेग़मबरों मे से एक है और ईसाई धर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं।  क़ुरान मे इसा का नाम 25 बार अया हे। सुराह मर्यम मे इनके  जन्म की कथा हे और इसी तरह सुराह अलि इम्रान मे भी।  मुहम्मद के हदिसो मे हे कि "तमाम नबी भाइ हे ओर ईसा मसीह मेरे सबसे क़रीबी भाई है क्यूंकि मेरे ओर ईसा मसीह के दर्मियान कोइ नबी नही अाया है"।
इस्लाम और यहूदी मत  :    इस्लाम बाइबिल में ईसा मसीह को एक आदरणीय नबी (मसीहा) माना जाता है, जो ईश्वर ने इस्राइलियों को उनके संदेश फैलाने को भेजा था। क़ुरान में ईसा के नाम का ज़िक्र मुहम्मद से भी ज़्यादा है और मुसलमान ईसा के कुंआरी द्वारा जन्म में मानते हैं।

इस्लाम में ईसा मसीह महज़ एक नश्वर इंसान माना जाता है, सब नबियों की तरह और ईश्वर-पुत्र या त्रिमूर्ति का सदस्य नहीं, और उनकी पूजा पर मनाही है।

इस्लाम के पाँच मूल स्तंभ है :

1. ज़कात :  इस्लाम के पवित्र ग्रंथ क़ोर'आन के मुताबिक हरेक समर्पित मुसलमान को साल (चन्द्र वर्ष) में अपनी आमदनी का 2.5 % हिस्सा ग़रीबों को दान में देना चाहिए। इस दान को ज़कात कहते हैं।
2. तौहीद  :   एक ख़ुदा को मानना​​ इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसी का नाम तौहीद है
3. नमाज़  :
4. सौम     :  रमजान के पवित्र मास में रखे जाने वाले उपवास को अरबी देशों में सौम  फ़ारसी भाषा के असर रुसूख रखने वाले देश जैसे, तुर्की, ईरान, पाकिस्तान, भारत, बंग्लादेश, में इसे 'रोज़ा' के नाम से जाना जाता है। मलेशिया, सिंगपूर, ब्रूनै जैसे देशों में इसे पुआसा कहते हैं।  इस शब्द का मूल संस्कृत शब्द 'उपवास' है।
5. हज     :  इस्लामी तीर्थयात्रा और मुस्लिम लोगों का पवित्र शहर मक्का में प्रतिवर्ष होने वाला विश्व का सबसे बड़ा जमावड़ा है। यह तीर्थयात्रा इस्लामी कैलेंडर के 12 वें और अंतिम महीने धू अल हिज्जाह की 8 वीं से 12 वीं तारीख तक की जाती है। इस्लामी कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है इसलिए इसमें, पश्चिमी देशों में प्रयोग में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर से ग्यारह दिन कम होते हैं, इसीलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हज की तारीखें साल दर साल बदलती रहती हैं।
एक घनाकार इमारत काबा के चारों ओर वामावर्त सात बार चलता है जो कि मुस्लिमों के लिए प्रार्थना की दिशा है, अल सफा और अल मारवाह नामक पहाड़ियों के बीच आगे और पीछे चलता है, ज़मज़म के कुएं से पानी पीता है, चौकसी में खड़ा होने के लिए अराफात पर्वत के मैदानों में जाता है और एक शैतान को पत्थर मारने की रस्म पूरा करने के लिए पत्थर फेंकता है। उसके बाद तीर्थयात्री अपने सर मुंडवाते हैं, पशु बलि की रस्म करते हैं और इसके बाद ईद उल-अधा नामक तीन दिवसीय वैश्विक उत्सव मनाते हैं।

शहादत - शहादत का मतलब है कि बंदा मन भाषा से यह स्वीकार करे कि इस ब्रह्रांड का निर्माता और मालिक सिर्फ ईश्वर (अल्लाह,खुदा) है वह सब पर मेहरबान है वह न किसी की औलाद है न उसकी कोई औलाद है केवल वही पूजा के योग्य है। वह सर्वशक्तिमान है और किसी को कोई शक्ति नहीं उसका इरादा इतना शक्तिशाली और गालिब है कि उसे संसार में सब मिलकर भी मगलोब नहीं कर सकते है उसकी शक्तियों की सीमा गिनती से बार है।
इस्लाम की ब्रांचे :

पढे

   धर्म किसे कहते है।              खलीफा व खिलाफत किसे कहते है         नबी व रसूल किसे कहते है            मोहम्मद साहब                नमाज







No comments:

Post a Comment

धन्यवाद

Note: Only a member of this blog may post a comment.