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11 December 2015

स्त्रियों से जुड़ी ये 4 चाणक्य नीतियां , शास्त्रों के गहन अध्यन से प्राप्त

आचार्य चाणक्य ने कई ग्रंथों का अध्यन कर  चाणक्य नीति नामक ग्रंथ की रचना  की थी। 

इस ग्रंथ में स्त्री और पुरुष के लिए कई उपयोगी नीतियां बताई गई हैं। ये नीतियां आज भी कई बातों का सटीक जवाब है।

पहली नीति -

" मूर्ख-शिष्यो-पदेशेन  दुष्टास्त्रीभरणेन  च।
  दु:खिते सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति।। "

इस श्लोक अर्थ है कि मूर्ख शिष्य को उपदेश देने पर, चरित्रहीन स्त्री का पालन-पोषण करने पर, किसी दुखी व्यक्ति के साथ रहने पर दुख: ही प्राप्त होता है।

दूसरी नीति -

" दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायक:।
  स-सर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशय:।। "

इस श्लोक का अर्थ है कि यदि कोई स्त्री दुष्ट स्वभाव वाली है, हमेशा कठोर वचन बोलने वाली है, चरित्रहीन है तो उसे छोड़ देना चाहिए या उससे दूर हो जाना चाहिए। इसी प्रकार किसी नीच व्यक्ति से भी किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखना चाहिए। जो नौकर अपने मालिक का आदेश नहीं मानता हो उसे कार्य से मुक्त कर देना चाहिए और जिस घर के आसपास सांप रहते हों वहां नहीं रहना चाहिए। जो भी व्यक्ति इन बातों का पालन नहीं करता है उसे मृत्यु के समान कष्ट भोगने पड़ते हैं।

तीसरी नीति -

" आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेद्धनैरपि।
  आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि।। "

इस श्लोक का अर्थ है कि किसी भी श्रेष्ठ पुरुष को आपत्तिकाल के लिए धन बचाकर रखना चाहिए। धन से भी अधिक अपनी पत्नी की रक्षा करनी चाहिए और पत्नी से भी ज्यादा स्वयं की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि पति सुरक्षित रहेगा तभी उसका परिवार भी सुरक्षित रहेगा।

चौथी नीति -

" यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी।
  विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि।। "

इस श्लोक का अर्थ है कि किसी पुरुष का पुत्र आज्ञाकारी हो और पत्नी वश में हो तथा धन की कोई कमी न हो तो उसका जीवन किसी स्वर्ग के समान ही है।
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