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04 December 2015

ॐ को क्यों माना जाता है महामंत्र एंव इसे बोलने के फायदे व नुकसान


सनातन धर्म और ईश्वर में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति देव उपासना के दौरान शास्त्रों, ग्रंथों में या भजन और कीर्तन के दौरान "ॐ" महामंत्र को कई बार पढ़ता, सुनता या बोलता है। ऋषि-मुनि कहते है ये "ॐ" की ध्वनि परमात्मा तक पहुचने का माध्यम है। 
धर्मशास्त्रों में यही "ॐ" प्रणव नाम से भी पुकारा गया है। असल में इस पवित्र अक्षर व नाम से गहरे अर्थ व दिव्य शक्तियां जुड़ीं हैं, जो अलग-अलग पुराणों और शास्त्रों में कई तरह से बताई गई हैं। खासतौर पर शिवपुराण में "ॐ" के प्रणव नाम से जुड़ी शक्तियों, स्वरूप व प्रभाव के गहरे रहस्य बताए हैं। 
शिव पुराण के अनुसार - 
प्र यानी प्रपंच, न यानी नहीं और व: यानी तुम लोगों के लिए। सार यही है कि प्रणव मंत्र सांसारिक जीवन में प्रपंच यानी कलह और दु:ख दूर कर जीवन के सबसे अहम लक्ष्य यानी मोक्ष तक पहुंचा देता है। यही वजह है कि "ॐ" को प्रणव नाम से जाना जाता है। दूसरे अर्थों में प्रनव को 'प्र' यानी प्रकृति से बने संसार रूपी सागर को पार कराने वाली नव यानी नाव बताया गया है।

ऋषि-मुनियों की दृष्टि से
'प्र - प्रकर्षेण,'न - नयेत् और व: युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव: बताया गया है। इसका सरल शब्दों में मतलब है हर भक्त को शक्ति देकर जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव है।

धार्मिक दृष्टि से परब्रह्म या महेश्वर स्वरूप भी नव या नया और पवित्र माना जाता  है। प्रणव मंत्र से उपासक नया ज्ञान और शिव स्वरूप पा लेता है। इसलिए भी यह प्रणव कहा गया है।


शिवपुराण की तरह अन्य हिन्दू धर्मशास्त्रों में भी प्रणव यानी "ॐ" ऐसा अक्षर स्वरूप साक्षात् ईश्वर माना जाता है और मंत्र भीइसलिए यह एकाक्षर ब्रह्म भी कहलाता है। धार्मिक मान्यताओं में प्रणव मंत्र में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सामूहिक शक्ति समाई है। यह गायत्री और वेद रूपी ज्ञान शक्ति का भी स्त्रोत माना गया है।

आध्यात्मिक दर्शन है  प्रणय यानी "ॐ" बोलने या ध्यान से शरीर, मन और विचारों पर शुभ प्रभाव होता है - 
वैज्ञानिक नजरिए से भी प्रणव मंत्र यानी "ॐ" बोलते वक्त पैदा हुई शब्द शक्ति और ऊर्जा के साथ शरीर के अंगों जैसे मुंह, नाक, गले और फेफड़ो से आने-जाने वाली शुद्ध वायु मानव शरीर के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। अनेक हार्मोन और खून के दबाव को नियंत्रित करती है। इसके असर से मन-मस्तिष्क शांत रहने के साथ ही खून के भी स्वच्छ होने से दिल भी सेहतमंद रहता है। जिससे मानसिक एकाग्रता व कार्य क्षमता बढ़ती है। व्यक्ति मानसिक और दिल की बीमारियों से मुक्त रहता है।

सुखासन में बैठकर चालीस मिनट प्रतिदिन "ॐ" का जप किया जाए तो सात दिन में ही अपनी प्रकृति में बदलाव आता महसूस होने लगता है। छह सप्ताह में तो पचास प्रतिशत तक बदलाव आ जाता है। ये लोग उन दो प्रतिशत लोगों में शुमार हो जाते हैं , जो संकल्प कर लें तो अपने से पचास गुना ज्यादा लोगों की सोच और व्यवहार में बदलाव ला सकते हैं।

अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि व्यक्ति के इस स्तर तक पहुंचने में मंत्र जप और स्थिरता पूर्वक बैठने के दोनों ही कारण बराबर उपयोगी हैं। दोनों में से एक भी गड़बड़ हुआ तो कठिनाई हो सकती है। हमारे यहां तो पालथी लगाकर सब लोग बहुत आसानी से बैठ जाते हैं, जबकि बाहर के देशों में भी ध्यान की कक्षा में प्रवेश करने वाले व्यक्ति दीक्षा लेने के बाद जप और ध्यान सीखते समय ही बैठने की इस तकनीक का अभ्यास शुरू कर देते हैं।

सुखासन में बैठकर मंत्र जप करने से या विधिवत अजपा करने से (मन में लगातार जप)। उसके कामयाब होने के लक्षण दिखार्ई देने लगते हैं। वे लक्षण यह है कि मंत्र जिस देवता की आराधना में है, उसकी विशेषताएं साधक में दिखाई देने लगती हैं।

दार्शनिक पाल ब्रंटन ने अपनी पुस्तक इन द सर्च ऑफ सीक्रेट इंडिया में उन साधु संतों के बारे में और उनकी साधना विधियों के बारे में लिखा है। पाल ब्रंटन ने लिखा है कि सिद्धों और चमत्कारी साधुओं की शक्ति का रहस्य बहुत कुछ उनके स्थिरता पूर्वक बैठने में था।  
                                   
नासा की खोज                                                                              
नासा के वैज्ञानिकों ने अनेक अनुसंधानों के बाद डीप स्पेस में यंत्रों द्वारा सूर्य में हर क्षण होने वाली एक ध्वनि को रिकार्ड किया। उस ध्वनि को सुना, तो वैज्ञानिक चकित रह गए क्योंकि ये कुछ आैर नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की वैदकि ध्वनि "ॐ" थी। इस मंत्र का गुणगान वेदों में ही नहीं हमारे अन्य ग्रंथों में किया गया है।   
         

ॐ के निरंतर जप का प्रभाव
र्इश्वर के निर्गुण तत्त्व से संबंधित है । र्इश्वर के निर्गुण तत्त्व से ही पूरे सगुण ब्रह्मांड की निर्मित हुई है । इस कारण जब कोई का जप करता है, तब अत्यधिक शक्ति निर्मित होती है ।

यदि व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर कनिष्ठ हो, तो केवल का जप करने से दुष्प्रभाव हो सकता है; क्योंकि उसमें इस जप से निर्मित आध्यात्मिक शक्ति को सहन करने की क्षमता नहीं होती ।

१. यह जानकारी ध्यानपूर्वक और भावपूर्वक चार घंटे की तक ॐ का जप करनेवाले व्यक्ति से संबंधित है । भगवान के नाम के आगे ॐ लगानेवालों के लिए जैसे ॐ नमः शिवाय का जप करनेवालों पर यह लागू नहीं होता । एक सामान्य व्यक्ति (पुरुष अथवा स्त्री) ॐ नमः शिवाय का मंत्र जप, ॐ से बिना प्रभावित हुए कर सकता है ।

२. नियमित ॐ का जप करनेवाले कनिष्ठ आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति पर, ॐ से निर्मित आध्यात्मिक शक्ति का विपरीत प्रभाव हो सकता है । कनिष्ठ आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति को शारीरिक कष्ट जैसे अति अम्लता, शरीर के तापमान में वृद्धि इत्यादि अथवा मानसिक स्तर पर व्याकुलता हो सकती है । स्त्रियों के लिए विशेष रूप से सुझाना चाहेंगे कि उन्हें केवल ॐ का जप नहीं करना चाहिए से उत्सर्जित तरंगों से अत्यधिक शक्ति उत्पन्न होती है, जिससे भौतिक एवं सूक्ष्म उष्णता निर्मित होती है । इससे पुरुषों की जननेन्द्रियों पर कोई प्रभाव नहीं पडता, क्योंकि वे देह रिक्ति से बाहर होती हैं; परंतु स्त्रियों के प्रसंग में, ये उष्णता उनके जननांगों को प्रभावित कर सकती है क्योंकि स्त्रियों की जननेन्द्रियां पेट की रिक्ति के भीतर होती हैं । इसलिए उन्हें अत्यधिक मासिक स्राव , मासिक स्राव न होना , मासिक स्राव के समय अत्यधिक वेदना होना , गर्भधारण न होना इत्यादि कष्ट हो सकते हैं । स्त्रियों को केवल का जप नहीं करना चाहिए ।

विभिन्न स्थानों पर ॐ छापना
अध्यात्मशास्त्र का आधारभूत नियम कहता है कि, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा उससे संबंधित शक्ति एकसाथ होती है । इसका अर्थ है कि जहां पर भी र्इश्वर का सांकेतिक रूप उपस्थित होता है, वहां उनकी शक्ति भी रहेगी । टी-शर्ट अथवा टेटू पर ॐ का चिन्ह होने से निम्नलिखित कष्टदायक अनुभव होते  हैं :
कष्ट जैसे व्याकुलता, अतिअम्लता, शारीरिक तापमान में वृद्धि, मानसिक पीडा आदि ।

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