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25 June 2016

सप्तपदी क्या है ?

जिस विवाह में सप्तपदी होती है वो वैदिक विवाह कहलाता है. सप्तपदी वैदिक विवाह का अभिन्न अंग है. इसके बिना विवाह पूरा नहीं माना जाता

हिन्दू धर्म में;  परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक परिपक्वता आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है। समाज के संभ्रान्त व्यक्तियों की,  गुरुजनों की,  कुटुम्बी-सम्बन्धियों की,  देवताओं की उपस्थिति इसीलिए इस धर्मानुष्ठान के अवसर पर आवश्यक मानी जाती है कि दोनों में से कोई इस कत्तर्व्य-बन्धन की उपेक्षा करे,  तो उसे रोकें और प्रताड़ित करें।  पति-पत्नी इन सन्भ्रान्त व्यक्तियों के सम्मुख अपने निश्चय की, प्रतिज्ञा-बन्धन की घोषणा करते हैं। यह प्रतिज्ञा समारोह ही विवाह संस्कार है।

दिशा और प्रेरणा
फेरे फिर लेने के उपरान्त सप्तपदी की जाती है। 
सात बार वर-वधू साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर फौजी सैनिकों की तरह आगे बढ़ते हैं। सात चावल की ढेरी या कलावा बँधे हुए सकोरे रख दिये जाते हैं, इन लक्ष्य-चिह्नों को पैर लगाते हुए दोनों एक-एक कदम आगे बढ़ते हैं, रुक जाते हैं और फिर अगला कदम बढ़ाते हैं। इस प्रकार सात कदम बढ़ाये जाते हैं। प्रत्येक कदम के साथ एक-एक मन्त्र बोला जाता है। ( अनुभव-हीन पंडितों एंव बुजुर्गो की अनदेखी के कारण यह आवशयक परम्परा अब सीमित दायरे में रह गई है )

पहला कदम अन्न के लिए,  दूसरा बल के लिए,  तीसरा धन के लिए,  चौथा सुख के लिए,  पाँचवाँ परिवार के लिए,  छठवाँ ऋतुचर्या के लिए और सातवाँ मित्रता के लिए उठाया जाता है।  विवाह होने के उपरान्त पति-पत्नी को मिलकर सात कायर्क्रम अपनाने पड़ते हैं। उनमें दोनों का उचित और न्याय संगत योगदान रहे, इसकी रूपरेखा सप्तपदी में निधार्रित की गयी है।

प्रथम कदम - अन्न वृद्धि के लिए है। आहार स्वास्थ्यवर्धक हो, घर में चटोरेपन को कोई स्थान न मिले। रसोई में जो बने, वह ऐसा हो कि स्वास्थ्य रक्षा का प्रयोजन पूरा करे, भले ही वह स्वादिष्ट न हो। अन्न का उत्पादन, अन्न की रक्षा, अन्न का सदुपयोग जो कर सकता है, वही सफल गृहस्थ है। अधिक पका लेना, जूठन छोड़ना, बतर्न खुले रखकर अन्न की चूहों से बबार्दी कराना, मिचर्-मसालो की भरमार उसे तमोगुणी बना देना, स्वच्छता का ध्यान न रखना, आदि बातों से आहार पर बहुत खर्च करते हुए भी स्वास्थ्य नष्ट होता है, इसलिए दाम्पत्य जीवन का उत्तरदायित्व यह है कि आहार की सात्त्विकता का समुचित ध्यान रखा जाए।
मंत्र - अन्न वृद्धि के लिए पहली साक्षी- 
ॐ एको विष्णुजर्गत्सवर्ं, व्याप्तं येन चराचरम्।  
हृदये यस्ततो यस्य, तस्य साक्षी प्रदीयताम्॥ 
पहला चरण- ॐ इष एकपदी भव सा मामनुव्रता भव। 
विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥१॥

दूसरा कदम -  शारीरिक और मानसिक बल की वृद्धि के लिए है। व्यायाम, परिश्रम, उचित एवं नियमित आहार-विहार से शरीर का बल स्थिर रहता है। अध्ययन एवं विचार-विमर्श से मनोबल बढ़ता है। जिन प्रयतनों से दोनों प्रकार के बल बढें, दोनों अधिक समर्थ, स्वस्थ एवं सशक्त बनें-उसका उपाय सोचते रहना चाहिए।
मंत्र -  बल वृद्धि के लिए दूसरी साक्षी- 
ॐ जीवात्मा परमात्मा च, पृथ्वी आकाशमेव च। 
सूयर्चन्द्रद्वयोमर्ध्ये, तस्य साक्षी प्रदीयताम्॥२॥ 
दूसरी चरण- ॐ ऊजेर् द्विपदी भव सा मामनुव्रता भव। 
विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥२॥

तीसरा कदम -  धन की वृद्धि के लिए है। अर्थ व्यवस्था बजट बनाकर चलाई जाए। अपव्यय में कानी कौड़ी भी नष्ट न होने पाए। उचित कार्यों में कंजूसी न की जाए- फैशन, व्यसन, शेखीखोरी आदि के लिए पैसा खर्च न करके उसे पारिवारिक उन्नति के लिए सँभालकर, बचाकर रखा जाए। उपार्जन के लिए पति-पत्नी दोनों ही प्रयतन करें। पुरुष बाहर जाकर कृषि, व्यवसाय, नौकरी आदि करते हैं, तो स्त्रियाँ सिलाई, धुलाई, सफाई आदि करके इस तरह की कमाई करती हैं। उपार्जन पर जितना ध्यान रखा जाता है, खर्च की मर्यादाओं का भी वैसा ही ध्यान रखते हुए घर की अर्थव्यवस्था सँभाले रहना दाम्पत्य जीवन का अनिवार्य कत्तर्व्य है।
मंत्र - धन वृद्धि के लिए तीसरी साक्षी- 
ॐ त्रिगुणाश्च त्रिदेवाश्च, त्रिशक्तिः सत्परायणाः। 
लोकत्रये त्रिसन्ध्यायाः, तस्य साक्षी प्रदीयताम्।। 
तीसरा चरण- ॐ रायस्पोषाय त्रिपदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥३॥

चौथा कदम -  सुख की वृद्धि के लिए है। विश्राम, मनोरंजन, विनोद, हास-परिहास का ऐसा वातावरण रखा जाए कि गरीबी में भी अमीरी का आनन्द मिले। दोनों प्रसन्नचित्त रहें। मुस्कराने की आदत डालें, हँसते-हँसाते जिन्दगी काटें । चित्त को हलका रखें, 'सन्तोषी सदा सुखी' की नीति अपनाएँ।
मंत्र -  सुख वृद्धि के लिए चौथी साक्षी- 
ॐ चतुमर्ुखस्ततो ब्रह्मा, चत्वारो वेदसंभवाः। 
चतुयुर्गाः प्रवतर्न्ते, तेषां साक्षी प्रदीयताम्। 
चौथा चरण- ॐ मायो भवाय चतुष्पदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥४॥

पाँचवाँ कदम -  परिवार पालन का है। छोटे बड़े सभी के साथ समुचित व्यवहार रखा जाए। आश्रित पशुओं एवं नौकरों को भी परिवार माना जाए, इस सभी आश्रितों की समुचित देखभाल, सुरक्षा, उन्नति एवं सुख-शान्ति के लिए सदा सोचने और करने में लापरवाही न बरती जाए।
मंत्र -  प्रजा पालन के लिए पाँचवी साक्षी- 
ॐ पंचमे पंचभूतानां, पंचप्राणैः परायणाः। 
तंत्र दशर्नपुण्यानां, साक्षिणः प्राणपंचधाः॥ 
पाँचवाँ चरण- ॐ प्रजाभ्यां पंचपदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥५॥

छठा कदम -  ऋतुचर्या का है। सन्तानोत्पादन एक स्वाभाविक वृत्ति है, इसलिए दाम्पत्य जीवन में उसका भी एक स्थान है, पर उस सम्बन्ध में मयार्दाओं का पूरी कठोरता एवं सतर्कता से पालन किया जाए, क्योंकि असंयम के कारण दोनों के स्वास्थ्य का सर्वनाश होने की आशंका रहती है, गृहस्थ में रहकर भी ब्रह्मचर्य का समुचित पालन किया जाए। दोनों एक दूसरे का भी सहयोगी मित्र की दृष्टि से देखें, कामुकता के सर्वनाशी प्रसंगों को जितना सम्भव हो, दूर रखा जाए। सन्तान उत्पन्न करने से पूर्व हजार बार विचार करें कि अपनी स्थिति सन्तान को सुसंस्कृत बनाने योग्य है या नहीं। उस मर्यादा में सन्तान उत्पन्न करने की जिम्मेदारी वहन करें।
मंत्र -  ऋतु व्यवहार के लिए छठवीं साक्षी- 
ॐ षष्ठे तु षड्ऋतूणां च, षण्मुखः स्वामिकातिर्कः। 
षड्रसा यत्र जायन्ते, कातिर्केयाश्च साक्षिणः॥ 
छठवाँ चरण- ॐ ऋतुभ्यः षट्ष्पदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥६॥

सातवाँ कदम -  मित्रता को स्थिर रखने एवं बढ़ाने के लिए है। दोनों इस बात पर बारीकी से विचार करते रहें कि उनकी ओर से कोई त्रुटि तो नहीं बरती जा रही है, जिसके कारण साथी को रुष्ट या असंतुष्ट होने का अवसर आए। 
मंत्र -  मित्रता वृद्धि के लिए सातवीं साक्षी- 
ॐ सप्तमे सागराश्चैव, सप्तद्वीपाः सपवर्ताः। 
येषां सप्तषिर्पतनीनां, तेषामादशर्साक्षिणः॥ 
सातवाँ चरण- ॐ सखे सप्तपदी भव सा मामनुव्रता भव। 
विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥७॥ 

दूसरा पक्ष कुछ भूल भी कर रहा हो, तो उसका उत्तर कठोरता, कर्कशता से नहीं, वरन् सज्जनता, सहृदयता के साथ दिया जाना चाहिए, ताकि उस महानता से दबकर साथी को स्वतः ही सुधरने की अन्तःप्रेरणा मिले। बाहर के लोगों के साथ,  दुष्टों के साथ दुष्टता की नीति किसी हद तक अपनाई जा सकती है, पर आत्मीयजनों का हृदय जीतने के लिए उदारता, सेवा, सौजन्य, क्षमा जैसे शस्त्र की काम में लाये जाने चाहिए। 

सप्तपदी में सात कदम बढ़ाते हुए इन सात सूत्रों को हृदयंगम करना पड़ता है । इन आदर्शों और सिद्धान्तों को यदि पति-पत्नी द्वारा अपना लिया जाए और उसी मार्ग पर चलने के लिए कदम से कदम बढ़ाते हुए अग्रसर होने की ठान ली जाए,  तो दाम्पत्य जीवन की सफलता में कोई सन्देह ही नहीं रह जाता।

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